गा ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ टीचर एजुकेशन GGITE एवं माडर्न थियेटर फाउंडेशन MTF के तत्वावधान में हिंदी रंगमंच दिवस पर सेमिनार का आयोजन बीएड कॉलेज रमजानपुर में बुधवार को किया गया। सेमिनार के लिए छात्रों के सर्वांगीण विकास में रंगमंच की भूमिका। संदर्भ – शिक्षा में नाट्यकला को रखा गया था। खास बात यह रही कि सभी वक्ता और अतिथियों ने भाषण के दौरान विषय वस्तुओं में अपने को बांधे रखा। इससे पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन विधान परिषद सदस्य सर्वेश कुमार, नृत्याचार्य सुदामा गोस्वामी,
वरिष्ठ रंगकर्मी अवधेश कुमार, अनिल पतंग व
अमित रौशन, प्राचार्य डॉ. नीरज कुमार एवं प्रो. परवेज यूसुफ ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
दरभंगा स्नातक क्षेत्र से एमएलसी सर्वेश कुमार ने कहा कि 2015 के बाद फाइन आर्ट और नाट्यकला की शिक्षा को बीएड कॉलेज में शामिल किया गया, जो सराहनीय है। लेकिन माध्यमिक विद्यालयों में नाट्यकला की पढ़ाई नहीं हो रही है। अगर माध्यमिक शिक्षा स्तर पर नाटक की पढ़ाई नहीं होगी तो उच्च शिक्षा नाटक को शामिल करने का लाभ नहीं मिल सकेगा। इस कारण वे आगामी विधानसभा सत्र के दौरान इस मुद्दे को उठाकर सरकार का ध्यान आकृष्ट करेंगे। उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से लेगी।
इससे पूर्व विषय प्रवेश कराते हुए रंगकर्मी सह प्राध्यापक प्रो. परवेज यूसुफ ने कहा कि यूनेस्को ने 1996 में ही 21वीं शताब्दी की शिक्षा के लिए चार
आधार स्तम्भ की सिफारिश किया था। जिसके अंतर्गत शिक्षा में नाटक कला की महत्ता दी गई है।
वरिष्ठ रंगकर्मी अवधेश ने कहा कि रंगमंच को शिक्षा के प्रारंभिक स्तर से जोड़ना चाहिए। क्योंकि नाटक के माध्यम से ज्ञान का संवर्द्धन होता है। किसी घटना का पुनर्गठन नाटक में होता है। नाटक में सभी कलाओं का समावेश है। क्योंकि नाटक में अभिनय, चित्रकला, गीत – संगीत, फाइन आर्ट आदि कितने कलाएं समाहित है।
वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल पतंग ने हिंदी नाटक के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नाटक में दुनिया की तमाम कला समाहित है। अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम नाटक है। उन्होंने कहा कि इंटर काउंसिल में नाटक की पढ़ाई होती थी, लेकिन जैसे ही काउंसिल समाप्त हुई और नाटक की पढ़ाई बंद हो गई। उन्होंने माध्यमिक विद्यालयों में नाट्यकला की पढ़ाई की मांग रखी।
युवा रंगकर्मी अमित रौशन ने बिहार के सभी विद्यालयों में संगीत- नृत्य व फाइन आर्ट के शिक्षक तो है लेकिन रंगमंच के लिए शिक्षक क्यों नहीं। यह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि रंगमंच के क्षेत्र में रोजगार का अवसर मिले तभी यह जिंदा रहेगा।
अध्यक्षता करते हुए नृत्याचार्य सुदामा गोस्वामी ने कहा कि नाटक विधा आदिकाल से चली आ रही है। कृष्ण -राधा का रासलीला से बड़ा कौन नाटक हो सकता है। युवा पीढ़ी को नाट्यकला से जुड़ने का उन्होंने आह्वान किया।
प्राचार्य डॉ. नीरज कुमार ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हमारा जीवन भी रंगमंच के कलाकारों जैसी है। सामाजिक कुरीतियों से लड़ने की बड़ी क्षमता नाट्यकला में है। सेमिनार को प्रो. अंजलि, प्रो. विपिन कुमार, प्रो. सुधाकर पांडेय, डॉ. अनिता, प्रशिक्षु कुमारी ममता ने भी अपने विचारों को रखा। इस मौके पर प्रशिक्षु कृष्ण कुमार ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के रश्मिरथी के तीसरे सर्ग की प्रस्तुति कर दर्शकों का मन मोह लिया।